भारती सिंह की मां दूसरे घरों के जूठे बर्तन मांज कर करती थी गुजारा, बर्तन मांजे,झूठा खाना खाया…भारती सिंह ने बताई दर्दनाक आप बीती

एंटरटेनमेंट की दुनिया में अपना नाम सुर्खियों में लिख आने वाली भारती सिंह इन दिनों काफी ज्यादा सुर्खियों में आ रही है आपको बता दें कि अभी हाल ही में भारती सिंह से जुड़ी कुछ खबर सुनने को और देखने को मिल रही है,
भारती सिंह ने हाल ही में अपने बचपन से जुड़े कई किस्सों पर खुलकर बात की है, उनकी मां ने घरों का काम करके घर का गुजारा किया है, भारती सिंह ने अभी हाल ही में एक शो के दौरान अपने बच्चन बचपन के किस्से सुनाते हुए उन्होंने कहा कि हमने बचपन में बहुत ज्यादा गरीबी देखिए हमने हमारा जीवन यापन उस कदर किया है , जैसे कि सड़क पर रहने वाले लोग करते हैं मेरी मां दूसरों के घरों पर जाकर बर्तन मांज कर हमारा गुजारा करती थी, हमारी पिता की मौत के बाद हमारा सब कुछ हमारी मां ही थी,

भारती सिंह ने सुनाई अपनी कहानी

भारती सिंह की मां दूसरे घरों के जूठे बर्तन मांज कर करती थी गुजारा,  बर्तन मांजे,झूठा खाना खाया...भारती सिंह ने बताई दर्दनाक आप बीती

एक टॉक शो के दौरान भारती सिंह ने अपने बचपन के उन पलों को याद किया जिसमें उन्होंने और उनके परिवार ने बहुत गरीबी देखी है, भारती सिंह ने पहली बार खुलासा किया है कि पापा की मौत के बाद उनकी मां और पूरे परिवार ने किस तरह से घर का गुजारा किया, अभी भले ही भारतीय सिंह ने कई ऊंचाइयों को छू लिया है पर उन्होंने अपने बचपन के किस्से सुना कर अपनी यादव को फिर से तरोताजा कर लिया है, उनकी आंखों में बचपन की यादें और बचपन के बीते दिन के किस्से सुनाने पर जो दुख और जो उम्मीदें थी वह आंखों से इस कदर झलक रही थी, कि मानो अब वह निकल कर बाहर ही आने वाली हो, भारती सिंह ने बचपन में बहुत ज्यादा गरीबी में अपना जीवन यापन किया है, और गरीबी के इस पलकों भारती सिंह ने फिर से तरोताजा कर अपनी पुरानी यादों को फिर से एक बार जिंदा कर दिया है,

क्या हुआ जब भारती सिंह के पापा गुजर गए

भारती सिंह की मां दूसरे घरों के जूठे बर्तन मांज कर करती थी गुजारा,  बर्तन मांजे,झूठा खाना खाया...भारती सिंह ने बताई दर्दनाक आप बीती

नीना गुप्ता के शो में भारती सिंह बताया, ‘मेरा हमेशा से गरीबी पर फोकस रहा है, मैं तब 2 साल की थी जब मेरे पापा गुजर गए, मेरे भाइयों और बहनों ने नौकरी छोड़ दी, वो एक फैक्ट्री मे भारी-भरकम कंबल ले जाने का काम करते थे। ऐसे कंबल जब हम कभी इस्तेमाल नहीं कर सकते, वो रात को बैठकर सिलाई करते, कभी-कभी मेरी मम्मी दुपट्टा सिलती थी, मुझे अभी भी उन कंबलों की महक और उन मशीनों से नफरत है, वह बचपन आज भी मेरी आंखों के सामने इस कदर आता है, कि उस बचपन से मुझे पूरी तरीके से डर लगता है, बहुत भयंकर तरीके से उस बचपन से नफरत हो चुकी है, जिस बचपन में मैंने अपना सब कुछ खो दिया था.

About Krishna Singh

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *