हाथ ना होते हुए भी भारत को दिलाया स्विमिंग में गोल्ड मेडल, सुनीये सुयश जाधव की रोचक कहानी

जो आपके पास नहीं है उस पर दुखी होने की बजाय जो आपके पास है, उस पर फोकस करेंगे तो आप जल्दी ही सफल हो जाएंगे यह सोच उन प्रतिभागियों की है, जिन्होंने अपने दिव्यांगता की कमजोरी को अपने पास नहीं आने दिया आज हम आपको एक ऐसे दिव्यांग खिलाड़ी से मिलाने वाले हैं, जिन्होंने बिना हाथ कोई भी भारत को एक नहीं दो नहीं बल्कि 5 गोल्ड मेडल जीते हैं असंभव को संभव बनाने वाले सुयश जाधव आज काफी ज्यादा चर्चा में आ रखे हैं, सुयश जाधव की इस दुखी भरी कहानी से हम आज आपको रूबरू करवाने वाले हैं, बिना हाथों के भारत को गोल्ड मेडल जीत आने वाले सुयश यादव आज भारत का एक बहुत बड़ा सितारा बन चुके हैं, आज हम इनके कानी से आपको रूबरू करवाने वाले हैं तो दिल थाम कर बैठिए और इस आर्टिकल का भरपूर लुफ्त उठाइए।

बिना हाथों के समाज और देश का नाम किया रोशन

हाथ ना होते हुए भी भारत को दिलाया स्विमिंग में गोल्ड मेडल, सुनीये सुयश जाधव की रोचक कहानी

सूर्यनारायण जाधव आज अपनी तैराकी के दम पर पुणे के जिले के खेल अधिकारी बन चुके हैं, 2004 में उनके भाई की शादी के दौरान करंट लगने से उनके दोनों हाथ काटने पड़े थे वह स्विमिंग तो बचपन से ही करते थे, लेकिन इस हादसे ने उनकी जिंदगी को पूरी तरीके से बदल कर रख दिया सुयश बताते हैं, कि उनके पिता नारायण जाधव ने उनके हिम्मत की काफी बड़ी दाग दी है, उनका कहना था कि मैं बिना हाथों के भी कुछ भी कर सकता हूं, सुयश ने बताया की उनके पिता स्विमर थे, और नेशनल लेवल पर मेडल जीतना चाहते थे, उन्होंने मुझे अपना सपना बताया और उनका सपना पूरा करना मेरे उद्देश्य बन गया इंटरनेशनल लेवल पर 5 गोल्ड मेडल सहित 21 मेडल जीत चुके हैं, और राष्ट्रीय और स्टेट चैंपियनशिप सभी मिलाकर अब तक 125 मेडल जीत चुके है।

3 साल की उम्र में ही कर दिया था स्विमिंग की तैयारी

हाथ ना होते हुए भी भारत को दिलाया स्विमिंग में गोल्ड मेडल, सुनीये सुयश जाधव की रोचक कहानी

अभी हाल ही में जहां देखो वहीं पर सुयश नारायण जाधव काफी ज्यादा चर्चा का विषय बने हुए हैं, सुयश जाधव ने अभी हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान काफी जबरदस्त बातें बताइ है, सुयश का कहना है कि अगर इंसान चाहे तो वह सब दूर कर सकता है, उन्होंने बताया कि जब मैं 6 क्लास में पढ़ाई करता था तब मेरे दोनों हाथ बिजली के एक आपातजनिक हादसे में चले गए थे, लेकिन फिर भी मैंने हार नहीं मानी और मैं आगे से आकर लड़ता गया मैंने मात्र 3 साल की उम्र में स्विमिंग की तैयारी शुरू कर दी थी मेरे पिताजी का सपना था, कि मैं इस देश के लिए गोल्ड मेडल जीतकर देश का और समाज का नाम रोशन करू।

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